नए जिलों का होगा पुनर्गठन फिर होंगे वन स्टेट-वन इलेक्शन !

 गहलोत राज में बने नए जिलों के लिए बनी रिव्यू कमेटी छोटे जिलों को खत्म करने में सहमत है। वन स्टेट-वन इलेक्शन से पहले भाजपा सरकार जिलों का नए सिरे से पुनर्गठन यानी उनकी सीमाएं बनाएगी। बताया जा रहा है कि नए सिरे से जिलों की सीमाएं बनने के बाद ही वन स्टेट-वन इलेक्शन को लागू किया जाएगा। यदि ऐसा होता है तो जनवरी 2025 में होने वाले 7 हजार ग्राम पंचायतों के चुनाव भी टलेंगे और यहां प्रशासक भी लगाएंगे। गहलोत राज में बनाए गए छोटे जिलों को खत्म करके जिलों का पुनर्गठन करने की एक्सरसाइज लगभग पूरी हो चुकी है। कानून मंत्री ने भी साफ तौर पर इसके संकेत दिए हैं कि बिना जिलों पर फैसले के वन स्टेट वन इलेक्शन का काम आगे नहीं बढ़ सकता। वहीं, दावा किया जा रहा है कि दीपावली के बाद इन मुद्दों पर फैसला ले सकती है सरकार। गहलोत राज में बनाए गए आधा दर्जन के आसपास जिलों को मर्ज या खत्म किया जा सकता है। इन जिलों को लेकर बनी मंत्रियों की कमेटी ने भी अपना काम लगभग पूरा कर लिया है। कमेटी ने भी यह माना है कि कई जिले पैरामीटर पर खरे नहीं उतरते हैं, ऐसे में उन्हें मर्ज करना ही ठीक रहेगा। कमेटी में शामिल मंत्रियों का तर्क है कि विधानसभा क्षेत्र जितने इलाके को जिला बना दिया। ऐसे इलाके जिले बनने लायक थे। इनकी डिमांड नहीं थी और न वे पैरामीटर पर खरे उतर रहे थे। कमेटी की रिपोर्ट भी लगभग फाइनल दौर में है। सूत्रों के मुताबिक रिव्यू के लिए बनी कमेटी के सभी मंत्रियों ने भी छोटे जिलों को मर्ज करने पर ही अपनी राय दी है। जल्दी यह रिपोर्ट कैबिनेट में रखी जा सकती है। गहलोत राज के छोटे जिलों को मर्ज या खत्म करने पर फैसला करने से पहले कई राजनीतिक पहलुओं पर भी विचार किया जा रहा है। सरकार और बीजेपी का एक धड़ा जिले खत्म करने राजनीतिक पहलुओं को लेकर भी राय दे रहा है। इस मत के नेताओं का मानना है कि उपचुनाव से पहले जिले खत्म करने का फैसला राजनीतिक तौर पर बूमरैंग भी साबित हो सकता है। ऐसे में उपचुनाव खत्म होने का इंतजार किया जा सकता है। उपचुनाव की वोटिंग के बाद ही इस पर फैसला लिया जाए। वहीं, सरकार और पार्टी के दूसरे धड़े का यह मानना है की गहलोत राज के जिलों पर फैसला जल्द करना चाहिए। पार्टी ने विधानसभा चुनाव से पहले भी गहलोत के छोटे जिलों का खुलकर विरोध किया था, ऐसे में अगर अब इन जिलों के पुनर्गठन या मर्ज करने का फैसला होता है तो यह वादा पूरा करने जैसा ही होगा। हाल ही में जनगणना रजिस्ट्रार जनरल ने देशभर में नई प्रशासनिक यूनिट बनाने और उनकी बाउंड्रीज को बदलने पर लगी रोक को 31 दिसंबर तक के लिए हटा लिया है। पहले जनगणना रजिस्टर्ड जनरल ने 1 जुलाई से सीमाएं फ्रीज कर दी थी, लेकिन अब 31 दिसंबर तक छूट देने से सरकार को वक्त मिल गया है। सरकार अगर उपचुनाव की वोटिंग के बाद भी फैसला करती है तो भी उसके पास वक्त रहेगा। सरकार के सलाहकारों और मंत्री का एक धड़ा इस पक्ष में भी है कि वन स्टेट वन इलेक्शन और गहलोत राज के जिलों के पुनर्गठन का फैसला सरकार की पहली वर्षगांठ से पहले पूरा कर लिया जाए। इसकी घोषणा सरकार की पहली वर्षगांठ के दिन की जाए। ऐसा करके जनता में वादा पूरा करने का मैसेज देने की रणनीति भी हो सकती है। हालांकि इन सब मतों पर अभी कोई फाइनल फैसला होना बाकी है। अगले साल 2025 में जनवरी में 6975 ग्राम पंचायतों, मार्च में 704 और अक्टूबर में 3847 ग्राम पंचायतों का 5 साल का कार्यकाल पूरा हो रहा है। इन सबके साथ चुनाव कराने के लिए आधी पंचायतों के चुनाव आगे पीछे करने होंगे। सरकार इस गुत्थी को सुलझाने के लिए जनवरी में होने वाले सात हजार ग्राम पंचायतों के चुनाव टालने पर विचार कर रही है। जनवरी में चुनाव नहीं करवाने की हालत में इन संस्थाओं में प्रशासक लगाने होंगे


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